सुहानी वादियाँ और तुम
सुहानी वादियाँ और तुम
सिंदूरी हो रही माँग उषा की,
प्रातः की अरुणिम बेला में।
नव पुष्पों संग भ्रमर विचरे,
विमुग्ध हो प्रणय लीला में।
कितनी मधुरिम लगती वादी।
किरणों की जगमग मेला में।
ये सुहानी वादियाँ और साथ तेरा,
घूमता मैं हाथों में लिए हाथ तेरा।
ये शीतल पुरवाई बहती पुरजोर,
सपनों का मेरे दिखता न कोई छोर।
सपने बुनता तेरे सामीप्य का नित,
तेरे लिये रहता ये चंचल चित्त।
जूही बेला चमेली की चम्पा की,
आश्रित रहता तेरे अनुकम्पा की।
चातक पंछी सा तुम्हें निहारता,
स्वाति बूंद के लिए रहा पुकारता।
कस्तूरी सम बिखेर कर सुगंध,
बहका देती हो मेरा रंध्र-रंध्र।
वादियों को देखूँ या देखूं तुझे,
सुंदरतम तो तुम ही लगतीं मुझे।
खिलखिलाती कमलिनी सी,
अलसता की नाज़ुक लता सी।
मुस्कराती हो अरुणिमा ज्यूँ,
स्मित तेरी चम्पई मधुरिमा सी।
चाल तेरी देख हिरनी शरमाये,
स्वर सुनके कोयल छुप जाए।
इन वादियों में आना फिर कभी
लगाना न तुम गालों पर लाली।
अस्त होता सूर्य भी कह देगा,
आह ! कमनीय गालों वाली।
नृत्य न करना इन वादियों में,
मोरनी भी कुम्हला जाएगी।
झिलमिलाती तारिका सी तुम,
सौंदर्य राशि पूर्ण नृत्य करोगी!
रूप का मदिर अवलोकन करने।
संपूर्ण सृष्टि यहाँ पर आ जायेगी।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
15/11/21
Swati chourasia
16-Nov-2021 01:01 AM
Very beautiful 👌
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Zakirhusain Abbas Chougule
16-Nov-2021 12:31 AM
Nice
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Sunanda Aswal
15-Nov-2021 11:49 PM
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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